“कला एक ऐसी गतिविधि है जो किसी की भावनाओं को दूसरों तक पहुंचाती है।”
कला का अर्थ ,परिभाषा, विशेषताएँ और वर्गीकरण
कला मानवीय भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति है। ‘कला’ कल्याण की जननी है। कल्पना की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति का नाम ही कला है। कल्पना की अभिव्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से एवं विभिन्न माध्यमों द्वारा हो सकती है। यह अभिव्यक्ति जिस भी माध्यम एवं जिस भी प्रकार से हो वही कला के अन्तर्गत स्थान रखती है। श्रेष्ठ कलाकृति का जन्म अन्तः मन व चेतन मन दोनों के परस्पर सहयोग से ही होता है। ऐसी कला कभी अनैतिक नहीं हो सकती, क्योंकि उस कला में समाज के कल्याण व परोपकार की भावना निहित रहती है।
कला का अर्थ (Meaning of Art)
कला का सम्पूर्ण परिचय प्राप्त करने के लिए हमें ‘कला’ शब्द के अर्थ विकास को समझना होगा। यह अर्थ विकास हम इसके पाश्चात्य पर्याय ‘आर्ट” (ART) के माध्यम से जान सकते हैं जो कि लैटिन भाषा के ‘आर्स’ (ARS) शब्द से बना है और जिसका ग्रीक रूपान्तर है- “TEXVEN” (तैक्ने)। इस शब्द का प्राचीन अर्थ “शिल्प” (CRAFT) अथवा “नैपुण्य-विशेष है। जैसे स्वर्णकारी, दस्तकारी आदि। प्राचीन भारतीय मान्यताओं में भी कला के लिए “शिल्प और कलाकार के लिए ‘शिल्पी” शब्द का ही अधिक प्रयोग होता था।
प्राचीन काल में इस प्रकार का कोई भी विभाजन नहीं था। प्राचीन ग्रीक और रोमन भाषा का ‘आर्ट’ शब्द भी केवल शिल्प के लिए ही प्रयुक्त किया जाता था। उसमे ‘कला शब्द की सौन्दर्य-गरिमा पृथक रूप से समाविष्ट नहीं थी। 18 वीं शताब्दी में सौन्दर्य-शास्त्रियों ने ‘शिल्प’ और ‘कला’ का विभाजन ‘उपयोगी’ एवं ‘ललित कला के रूप में किया और 19 वीं शताब्दी के आते-आते ‘कला’ शब्द में छिपा हुआ ‘सौन्दर्य-बोध’ इतना प्रबल हो उठा कि अपने पुराने विशेषण ‘ललित’ (FINE) को हटा देने पर भी वह अपने अपेक्षित अर्थ को पूर्ण रूप से ध्वनित करने लगी और सामान्य व्यवहार में ‘ललित कला’ के लिए केवल मात्र ‘कला’ शब्द का ही प्रयोग किया जाने लगा।
कला के प्रति भारतीयों का जो दृष्टिकोण रहा है, उसे हम यहाँ की विभिन्न विस्तृत कला सूचियों के माध्यम से ज्ञात कर सकते हैं। जैसे-
ललित विस्तर:86
प्रबंधन कोष: 72
कामसूत्र (वात्स्यायन कृत) 64
कालिका-पुराण:64
कादम्बरी:64
काव्य-शास्त्र (आचार्य दण्डीकृत):64
अग्नि-पुराण:64
बौद्ध एवं जैन सम्प्रदाय के ग्रन्थ:64
इस प्रकार अधिकांश सूचियों में कलाओं की संख्या 64 (चौंसठ) होने से यही संख्या सर्वमान्य होनी चाहिये। यद्यपि यह संख्या-विभाजन अत्यन्त विवादास्पंद है।
कला की परिभाषायें
कला को विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया गया है।
भारतीय मनीषियों की राय
रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, “जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है।” मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार, ‘कला अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति है।
असित कुमार हाल्दार कहते हैं, ‘कला मानव का सात्विक गुण है। एक सरल भाषा है, जो मानव जीवन के सत्यों को सौन्दर्यात्मक एवं कल्याणकारी रूप में प्रस्तुत करती है। डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार, ‘जिस अभिव्यंजना में आन्तरिक भावों का प्रकाशन और कल्पना का योग रहता है, वही कला है।”
पाश्चात्य विद्वानों की राय
कवि ‘शैले” के शब्दों में, ‘कला’ कल्पना की अभिव्यक्ति है।”
फ्रायड कहते हैं, “दमित वासनाओं का उभरा हुआ रूप ही कला है।
प्लेटो के अनुसार, ‘कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है।”
अरस्तू कहते हैं, “कला प्रकृति के सौन्दर्यमय अनुभवों का अनुकरण है।
” प्रसिद्ध फ्रेंच समालोचक ‘फागुए’ के अनुसार, ‘कला भावों की उस अभिव्यक्ति को कहते हैं, जो तीव्रता से मानव हृदय को स्पर्श कर सके।”
टाल्सटॉय’ के मतानुसार, “कला एक मानवीय चेष्टा है, जिसमें एक मनुष्य अपनी अनुभूतियों को स्वेच्छापूर्वक कुछ संकेतों के द्वारा दूसरों पर प्रकट करता है। “कला के प्रति टॉल्सटॉय का यह दृष्टिकोण धार्मिक और नैतिक है। उन्होंने कला की ‘शिलर’, ‘डार्विन’ तथा ‘स्पेन्सर” द्वारा दी गई उस काम-मूलक परिभाषा का खण्डन किया है, जिसके अनुसार, ‘कला मानव जगत में ही नहीं, बल्कि पशु जगत में भी काम वासना से पैदा होती है।” ‘टॉल्सटॉय’ के अनुसार, ‘कला की महत्ता का ज्ञान भावों की सफल अभिव्यक्ति और कलाकार के मन पर पड़े हुए प्रभावों का सफलतापूर्वक संप्रेषण है।”
प्रसिद्ध समालोचक ‘हर्बर्ट रीड’ कहते हैं, ‘एक साधारण सा शब्द कला साधारणतया उन कलाओं से जुड़ा होता है, जिन्हें हम ‘रूपप्रद’ या ‘दृश्य’ कलाओं के रूप में जानते हैं। वस्तुतः इसके अन्तर्गत साहित्य व संगीत कलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिये, क्योंकि सभी कलाओं में कुछ तत्त्व एक समान होते हैं।
‘आर.जी. कलिंगवुड ने अपनी पुस्तक ‘कला के सिद्धान्त में लिखा है, “कला एक व्यक्ति की रचनात्मक इच्छा की सुन्दर अभिव्यक्ति है। यह कल्पना की रचनात्मक प्रक्रिया के द्वारा हमें प्राप्त होती है।”
भारत में कला को “योग साधना माना गया है। कला हमारे विचारों का एक दृश्य रूप है। वह हमारी ‘कल्पना-शक्ति’, ‘आदर्श-प्रियता’ एवं ‘सृजन शक्ति से युक्त है। सौन्दर्य व तीव्रतम् अनुभूति से आत्म-विभोर होकर ही कलाकार सृजन करता है। इस प्रकार की कला ही वास्तव में ‘भाव-पूर्ण’ व ‘रसपूर्ण” होती है। अतः ‘कल्पना की सौन्दर्यात्मक अभिव्यक्ति का नाम ही कला है।
प्राचीन गुहावासियों (Cave man) से लेकर आज तक मानव की इस कला का विकास क्रम रुका नहीं है। बल्कि देश काल की परिस्थितियों के आधार पर वह आगे ही बढ़ता गया है। ताड़ पत्र, छाल, कपडा, गुफाएँ, दीवारें, चट्टानें आदि जो भी मिला, उसने उसे ही सृजन का माध्यम बना लिया।
वस्तुतः कला की अनेक परिभाषाओं ने कला के स्वरूप को अस्पष्ट कर दिया है। व्यावहारिक दृष्टि से कला के बारे में यही बात कही जा सकती है कि कला का अर्थ उसके प्रभाव में निहित रहता है। एक सहृदय जिस कलाकृति से प्रभावित नहीं होता, वह कलाकृति उसके लिए अर्थहीन होती है। प्राचीन दृष्टिकोण से देखें तो यह प्रभाव “चमत्कार” के कारण पैदा होता है। अतः परम्परावादी विचारक ‘चमत्कारविरहित कला को कला नहीं मानते।
कला का वर्गीकरण / प्रकार
कला का वर्गीकरण विभिन्न दृष्टिकोणों और उद्देश्यों के आधार पर किया जा सकता है। ललित कला सौंदर्य और भावनाओं की अभिव्यक्ति पर केंद्रित होती है, जबकि उपयोगी कला कार्यात्मकता और सौंदर्य को मिलाने का प्रयास करती है। प्रदर्शन कला दर्शकों के सामने कला का जीवंत प्रदर्शन करती है।
कला का वर्गीकरण विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है। यहाँ कला को मुख्यतः दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
1. ललित कला (Fine Arts)
ललित कला का उद्देश्य सौंदर्य और भावनाओं की अभिव्यक्ति करना होता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार शामिल हैं:
- चित्रकला (Painting): रंगों और ब्रश का उपयोग करके चित्र बनाना।
- मूर्तिकला (Sculpture): विभिन्न सामग्रियों जैसे पत्थर, लकड़ी या धातु से आकृतियाँ बनाना।
- संगीत (Music): सुरों और लय का उपयोग करके भावनाओं को व्यक्त करना।
- नृत्य (Dance): शारीरिक मुद्राओं और भावों के माध्यम से कला का प्रदर्शन करना।
- रंगमंच (Theater): नाटकों और अभिनय के माध्यम से कहानियों का प्रदर्शन करना।
- वास्तुकला (Architecture): वास्तुकला किसी स्थान को मानव के लिए वासयोग्य बनाने की कला है।
- साहित्य (Literature): साहित्य कला में भाषा का सृजनात्मक और कलात्मक उपयोग किया जाता है।
2. उपयोगी कला (Applied Arts)
उपयोगी कला का उद्देश्य किसी वस्तु को कार्यात्मक और आकर्षक बनाना होता है। इसके अंतर्गत शामिल हैं:
- काष्ठ कला (Woodwork): लकड़ी से वस्तुएँ बनाना।
- धातुकला (Metalwork): धातु की वस्तुओं का निर्माण करना।
- मृदभांड कला (Pottery): मिट्टी से बर्तन बनाना।
- फैशन डिज़ाइन (Fashion Design): वस्त्रों और परिधानों का डिज़ाइन करना।
उपरोक्त कलाओं को निम्नलिखित प्रकार से भी श्रेणीकृत कर सकते हैं-
- साहित्य – काव्य, उपन्यास, लघुकथा, महाकाव्य आदि
- निष्पादन कलाएँ (performing arts) – संगीत, नृत्य, रंगमंच
- पाक कला (culinary arts) – बेकिंग, चॉकलेटरिंग, मदिरा बना
- मिडिया कला – फोटोग्राफी, सिनेमेलाटोग्राफी, विज्ञापन
- दृष्य कलाएँ – ड्राइंग, चित्रकला, मूर्त्ति कला
कला का महत्व
कला का महत्व जीवन के कई पहलुओं में गहराई से समाया हुआ है। यह व्यक्तिगत विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और समग्र रूप से समाज और संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
व्यक्तिगत विकास
भावनात्मक अभिव्यक्ति: कला मनुष्य को अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम प्रदान करती है। यह आत्म-अभिव्यक्ति का एक साधन है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक भावनाओं को समझ सकता है और साझा कर सकता है।
रचनात्मकता: कला रचनात्मकता को बढ़ाती है, जो किसी भी क्षेत्र में रचनात्मकता के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति को नए विचार और दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती है।
आध्यात्मिक शांति: कला, विशेष रूप से संगीत और नृत्य, शांति और मानसिक संतुलन प्रदान करती है। यह तनाव को कम करने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है।
सामाजिक महत्व
सांस्कृतिक संरक्षण: कला विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और इतिहास को संरक्षित करती है। यह समाज की पहचान और विरासत को दर्शाती है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ अपने पूर्वजों की संस्कृति को समझ सकें।
सामाजिक जागरूकता: कला सामाजिक मुद्दों के बारे में ध्यान आकर्षित करने और जागरूकता फैलाने का एक प्रभावी साधन है। नाटक, पेंटिंग और संगीत के माध्यम से, कलाकार सामाजिक समस्याओं को उजागर कर सकते हैं और बदलाव को प्रेरित कर सकते हैं।
सामुदायिक एकता: कला में विविध समुदायों को एकजुट करने की अद्भुत क्षमता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों और त्यौहारों के माध्यम से, यह व्यक्तियों के बीच संबंधों को बढ़ावा देता है, जिससे सामाजिक बंधन बढ़ते हैं।
कला का महत्व गहरा है, जो व्यक्तियों और समाज दोनों को समग्र रूप से प्रभावित करता है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास को समृद्ध करता है बल्कि सामाजिक सामंजस्य और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण में भी योगदान देता है। कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से, हमें अपने अनुभव, भावनाओं और विचारों को साझा करने का अवसर मिलता है, जो अंततः एक दयालु और संपन्न समुदाय के निर्माण को बढ़ावा देता है।
कला की उत्पत्ति कैसे हुई?
कला पुरापाषाण काल से ही अस्तित्व में है, लेकिन पहला बड़ा कलात्मक आंदोलन प्राचीन मिस्र में लगभग 3500 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था। तब से ही उन्होंने देवताओं, राजाओं और दैनिक जीवन की मूर्तियाँ और पेंटिंग बनाना शुरू किया। तब से, कला बदलती और बढ़ती रही है।
प्राचीन यूनानी कला ने देवताओं और मिथकों की सभी शानदार मूर्तियों और प्रतिमाओं के साथ वास्तव में उड़ान भरी। उसके बाद, रोमन कला उभरी और पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पाँचवीं शताब्दी ईस्वी तक एक बड़ी बात बन गई।
मध्य युग के दौरान, अधिकांश कला धर्म के बारे में थी, लेकिन जब पुनर्जागरण आया, तो कलाकारों ने व्यक्तिगत लोगों और उनके अनुभवों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया।
आधुनिक कला की शुरुआत 19वीं शताब्दी में इंप्रेशनिज़्म और पोस्ट-इंप्रेशनिज़्म जैसे आंदोलनों के साथ हुई। इस दौरान, क्यूबिज़्म, अतियथार्थवाद, अभिव्यक्तिवाद और अमूर्तता जैसी नई शैलियाँ सामने आईं। तब से, कला परिदृश्य विकसित होता रहा है और नई शैलियों और रुझानों को मिलाता रहा है।
कला की विशेषताएँ
कला की विशेषताओं को और विस्तार से समझाने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया जा सकता है:
- कला एक क्रिया है
कला को एक सक्रिय प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है, जिसमें कलाकार अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है। यह एक प्रकार की सृजनात्मकता है, जो मानव के मन की गहराईयों से निकलती है और उसे एक कलात्मक रूप देती है। कला के माध्यम से कलाकार अपनी आंतरिक दुनिया को बाहरी दुनिया में प्रस्तुत करता है.
- कला एक तकनीक है
कला में तकनीकी कौशल का महत्वपूर्ण स्थान है। चाहे वह चित्रकला हो, मूर्तिकला, संगीत या नृत्य, सभी में विशेष तकनीकों की आवश्यकता होती है। कलाकार को अपनी कला के प्रकार के अनुसार तकनीकी ज्ञान होना आवश्यक है, जिससे वह अपनी रचनाओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर सके.
- कला एक प्रकार का शिल्प है
कला को शिल्प के रूप में भी देखा जा सकता है, जहाँ विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके एक कलात्मक वस्तु का निर्माण किया जाता है। यह शिल्प कौशल और रचनात्मकता का संगम है, जो किसी भी कलाकृति को अद्वितीय बनाता है.
- कला का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
कला समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में मदद करती है। यह विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और सामाजिक मुद्दों को उजागर करने का माध्यम है। कला न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन का भी एक उपकरण बन सकती है
- कला की भावनात्मक गहराई
कला में भावनाओं का गहरा संबंध होता है। यह न केवल कलाकार के लिए, बल्कि दर्शकों के लिए भी भावनात्मक अनुभव उत्पन्न करती है। कला के माध्यम से लोग अपनी भावनाओं को समझने और व्यक्त करने में सक्षम होते हैं, जो उन्हें मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करता है.
- कला का अभिव्यक्ति का माध्यम
कला एक अभिव्यक्ति का साधन है, जहाँ कलाकार अपनी सोच, दृष्टिकोण और संवेदनाओं को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत करता है। यह एक ऐसा माध्यम है जो विचारों को संप्रेषित करने में मदद करता है, जिससे दर्शक उस कला के पीछे की कहानी को समझ सकते हैं.
- कला में नवीनता और कल्पनाशीलता
कला में नवीनता और कल्पनाशीलता का विशेष महत्व है। कलाकार अपनी रचनाओं में नए विचारों और दृष्टिकोणों को शामिल करते हैं, जिससे कला में विविधता और गहराई आती है। यह न केवल कलाकार के लिए, बल्कि समाज के लिए भी प्रेरणादायक होती है.
इन विशेषताओं के माध्यम से कला का महत्व और उसकी विविधता को समझा जा सकता है, जो मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आप कला बनाकर मूल्य और ज्ञान सीख सकते हैं।
कला खुद को खोजने, विकसित होने और यह व्यक्त करने का एक तरीका है कि आप कौन हैं। कला को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अद्वितीय बनाने वाली बात यह है कि यह आपको इसमें गोता लगाने और जो आप कर रहे हैं उससे वास्तव में जुड़ने देती है। कौशल का मतलब है किसी चीज़ को वास्तव में अच्छी तरह से करने में सक्षम होना, चाहे वह कला के माध्यम से हो, चतुर चालों के माध्यम से हो या सिर्फ़ साधारण शिल्प कौशल के माध्यम से हो। कला, विशेष रूप से, अपने हाथों और दिमाग दोनों का उपयोग करके रचनात्मक होने का एक तरीका है।
कला के तत्व
- रेखा (Line)
- रंग (Colour)
- रूप/आकृति (Form/Shape)
- तान (Tone)
- पोत (Texture)
- अंतराल (Space)
कला के तत्व वह मूलभूत घटक हैं जो किसी भी कला रचना को बनाने में सहायक होते हैं। इन तत्वों का सही उपयोग कला के प्रभाव को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यहाँ कला के प्रमुख तत्वों का विवरण दिया गया है:
1. रेखा (Line)
- परिभाषा: रेखा एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक खींची गई एक सीधी या वक्र पथ है।
- प्रकार: रेखाएं विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं, जैसे सीधी, वक्र, टूटती, मोटी, पतली आदि।
- उपयोग: रेखाओं का उपयोग आकार, दिशा, गति, और संरचना को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
2. रंग (Colour)
- परिभाषा: रंग एक दृश्य अनुभव है जो प्रकाश के विभिन्न तरंग दैर्ध्य के कारण उत्पन्न होता है।
- प्रकार: रंगों को प्राथमिक (लाल, नीला, पीला), द्वितीयक (हरे, नारंगी, बैंगनी) और तटस्थ (काले, सफेद, ग्रे) रंगों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- उपयोग: रंग भावनाओं को व्यक्त करने, ध्यान आकर्षित करने और वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. रूप/आकृति (Form/Shape)
- परिभाषा: आकृति दो-आयामी होती है, जबकि रूप तीन-आयामी होता है।
- प्रकार: आकृतियाँ ज्यामितीय (गोल, चौकोर) और जैविक (प्राकृतिक, असमान) हो सकती हैं।
- उपयोग: आकृतियों का उपयोग रचना को संरचना और पहचान देने के लिए किया जाता है।
4. तान (Tone)
- परिभाषा: तान रंग की गहराई या हल्केपन को दर्शाता है, जो प्रकाश और छाया के प्रभाव से उत्पन्न होता है।
- प्रकार: तान हल्का (हाई टोन) या गहरा (लो टोन) हो सकता है।
- उपयोग: तान का उपयोग गहराई, आयाम और मूड बनाने के लिए किया जाता है।
5. पोत (Texture)
- परिभाषा: पोत किसी सतह की विशेषता है, जो छूने या देखने पर अनुभव होती है।
- प्रकार: पोत वास्तविक (सतह की वास्तविकता) या दृश्य (दृश्यमान प्रभाव) हो सकता है।
- उपयोग: पोत का उपयोग कला में गहराई और जटिलता जोड़ने के लिए किया जाता है।
6. अंतराल (Space)
- परिभाषा: अंतराल खाली स्थान या नकारात्मक स्थान है जो कला रचना में मौजूद होता है।
- प्रकार: अंतराल को सकारात्मक (जहाँ वस्तुएं हैं) और नकारात्मक (खाली स्थान) में विभाजित किया जा सकता है।
- उपयोग: अंतराल का सही उपयोग संतुलन, गति और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
इन तत्वों का समुचित उपयोग कला की रचना को अधिक प्रभावी और आकर्षक बनाता है, जिससे दर्शक पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
कामसूत्र” में वर्णित 64 कलाएँ
कला की 64 कलाएँ प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिन्हें मुख्यतः वात्स्यायन के “कामसूत्र” में वर्णित किया गया है। ये कलाएँ विभिन्न प्रकार की शिल्प, कौशल और अभिव्यक्ति के रूपों को शामिल करती हैं। यहाँ 64 कलाओं की सूची दी गई है:
- नृत्य (Dance)
- वाद्य (Playing musical instruments)
- गायन (Singing)
- नाट्य (Theater/Acting)
- चित्रकला (Painting)
- मण्डलिका (Rangoli)
- पुष्पशय्या (Flower decoration)
- चित्रकथाभिनय (Picture story presentation)
- हस्तलाघव (Hand skills)
- शेखरापीडयोजन (Crown decoration)
- कर्णपत्रभंग (Ear ornamentation)
- गहना निर्माण (Jewelry making)
- तात्तवद्यान (Playing the tanpura)
- पुष्पगर्भिका (Making flower baskets)
- पत्रिका लेखन (Writing letters and documents)
- नीतिविनोद (Wit and humor)
- ध्रुवपत्थ्य (Singing dhruvapad)
- कौशल (Craftsmanship)
- वृक्ष चिकित्सा (Tree surgery)
- पशु चिकित्सा (Animal care)
- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना (Mimicking birds)
- भेड़, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति (Animal fighting techniques)
- उच्चाटन की विधि (Techniques of exorcism)
- घर आदि बनाने की कारीगरी (House construction skills)
- गलीचे, दरी आदि बनाना (Making carpets and rugs)
- बढ़ई की कारीगरी (Carpentry)
- कूटनीति (Diplomacy)
- ग्रंथों को पढ़ाने की चातुराई (Teaching scriptures)
- नई-नई बातें निकालना (Inventing new ideas)
- समस्यापूर्ति करना (Problem-solving)
- समस्त कोशों का ज्ञान (Knowledge of all dictionaries)
- मन में कटक रचना (Creating verses mentally)
- छल से काम निकालना (Using cunning)
- कानों के पत्तों की रचना (Making ear ornaments)
- संगीत (Music)
- कला की अन्य विधाएँ (Other artistic forms)
- वस्त्र कढ़ाई (Embroidery)
- बागवानी (Gardening)
- संगीत रचना (Composing music)
- चित्रांकन (Drawing)
- संगीत वादन (Playing music)
- शिल्प (Sculpture)
- आभूषण निर्माण (Making ornaments)
- कला की अन्य शैलियाँ (Other styles of art)
- कला के माध्यम से संवाद (Communication through art)
- संस्कृति का संरक्षण (Preservation of culture)
- आध्यात्मिकता (Spirituality)
- विज्ञान (Science)
- धार्मिक अनुष्ठान (Religious rituals)
- समाज सेवा (Social service)
- संवाद कौशल (Communication skills)
- अभिनव विचार (Innovative ideas)
- संस्कृति का अध्ययन (Study of culture)
- सामाजिक विज्ञान (Social sciences)
- कला का प्रचार (Promotion of art)
- साहित्य (Literature)
- कला का विश्लेषण (Analysis of art)
- सांस्कृतिक कार्यक्रम (Cultural programs)
- आधुनिक कला (Modern art)
- परंपरागत कला (Traditional art)
- कला का संरक्षण (Conservation of art)
- कला का मूल्यांकन (Evaluation of art)
- सांस्कृतिक धरोहर (Cultural heritage)
- कला का विकास (Development of art)
इन कलाओं का ज्ञान न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता को भी दर्शाता है।