कला क्या है? कला का अर्थ ,परिभाषा और कला के प्रकार ||kala kya hai,paribhasha,kala ke prakar

कला मानवीय अभिव्यक्ति का एक रूप है जो सौंदर्यबोध, कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता के माध्यम से व्यक्त होती है। कला के कई रूप हैं जैसे – चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, साहित्य आदि। कलाकार अपनी भावनाओं, विचारों और अनुभूतियों को कला के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। कला समाज, संस्कृति और मानवीय अनुभूतियों को दर्शाती है।

             आज हम चित्रकला के इतिहास के बारे में जानेंगे, जो मानव सभ्यता जितनी ही प्राचीन है। कला बनाने की प्रवृत्ति मानवता के उदय से ही हमारे पूर्वजों में निहित रही है। जिस क्षण से मनुष्यों ने पहली बार प्राकृतिक दुनिया का अनुभव किया, उन्होंने गुफाओं और चट्टानों की दीवारों पर आदिम चित्र बनाकर अपनी भावनाओं को व्यक्त किया। ये प्रारंभिक कलाकृतियाँ उनके जीवन की सबसे गहरी भावनाओं और चुनौतियों को दर्शाती हैं, कला के माध्यम से उनके अनुभवों को संरक्षित करती हैं। इसके अतिरिक्त, चित्रकला मनुष्यों के लिए अपनी संस्कृति को विकसित करने और व्यक्त करने का एक तरीका भी थी।

कला क्या है? कला का अर्थ || kala kya hai, Kala ka Arth

कला एक संस्कृत शब्द है जो माना जाता है कि ‘कल’ धातु से आया है, जिसका अर्थ है प्रसन्न करना। कुछ लोगों को लगता है कि यह ‘ कड़ ‘ से भी आया हो सकता है, जिसका अर्थ समान है। संस्कृत में, कला का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया गया है, लेकिन इसका आम तौर पर अर्थ किसी भी कार्य को पूर्ण कौशल के साथ करना होता है। ‘कला’ शब्द 13वीं शताब्दी की शुरुआत में आया और यह लैटिन शब्द ‘आर्स’ (ARS ) से आया है, जिसका अर्थ है शिल्प।

कला लोगों के लिए अपनी कल्पना का उपयोग करके अपनी भावनाओं और विचारों को दिखाने का एक तरीका है। यह पेंटिंग, संगीत, नृत्य या कहानियों जैसी चीजें हो सकती हैं जो हमें अलग-अलग भावनाओं का अनुभव कराती हैं या नए विचारों के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं। यह अक्सर अच्छा लगता है या दिखाता है कि कलाकार कितना कुशल है।

कला की परिभाषा ( kala ki paribhasha )

“मनुष्य की रचना ,जो उसके जीवन मे आनंद प्रदान करती  है , कला (आर्ट) कहलाती है। ”

कला मानवीय अभिव्यक्ति का एक रूप है जो सौंदर्यबोध, कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता के माध्यम से व्यक्त होती है।

कला शब्द का आज के समय के विभिन्न वर्गो मे प्रथक अर्थो मे प्रचलित है  अर्थात कला का उद्गम मानव की सौन्दर्य भावना का परिचायक है कला शब्द का प्रयोग ललित कला हेतु किया जाता है। 

कला को विभिन्न विद्वानों द्वारा विभिन्न तरीकों से परिभाषित किया गया है-

भारतीय मनीषियों  के अनुसार

रवीन्द्रनाथ टैगोर के शब्दों में, “जो सत् है, जो सुन्दर है, वही कला है।” मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार, ‘कला अभिव्यक्ति की कुशल शक्ति है।

असित कुमार हाल्दार कहते हैं, ‘कला मानव का सात्विक गुण है। एक सरल भाषा है, जो मानव जीवन के सत्यों को सौन्दर्यात्मक एवं कल्याणकारी रूप में प्रस्तुत करती है। डॉ. श्यामसुन्दर दास के अनुसार, ‘जिस अभिव्यंजना में आन्तरिक भावों का प्रकाशन और कल्पना का योग रहता है, वही कला है।”

पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार

कवि ‘शैले” के शब्दों में, ‘कला’ कल्पना की अभिव्यक्ति है।”

फ्रायड कहते हैं, “दमित वासनाओं का उभरा हुआ रूप ही कला है।

प्लेटो के अनुसार, ‘कला सत्य की अनुकृति की अनुकृति है।”

अरस्तू कहते हैं, “कला प्रकृति के सौन्दर्यमय अनुभवों का अनुकरण है।

” प्रसिद्ध फ्रेंच समालोचक ‘फागुए’ के अनुसार, ‘कला भावों की उस अभिव्यक्ति को कहते हैं, जो तीव्रता से मानव हृदय को स्पर्श कर सके।”

टाल्सटॉय’ के मतानुसार, “कला एक मानवीय चेष्टा है, जिसमें एक मनुष्य अपनी अनुभूतियों को स्वेच्छापूर्वक कुछ संकेतों के द्वारा दूसरों पर प्रकट करता है।”

कला के प्रकार ( kala ke prakar )

कला के कई प्रकार होते है  ओर इन प्रकारो का परिगणन भिन्न -भिन्न रीतियो से होता है ।

1- मोटे तोर पर जिस वस्तु ,रूप अथवा तत्व का निर्माण किया जाता है , उसी  के नाम पर इस कला का प्रकार कहलाता है , जैसे –

वास्तुकला या स्थापत्य कला –भवन निर्माण कला , जैसे दुर्ग , प्रसाद , मंदिर , स्तूप , चैत्य , मकबरे आदि- आदि।

मूर्तिकला – पत्थर या धातु की छोटी -बड़ी मूर्तिया

चित्रकला –भवन की भित्तियो , छतो या स्तंभो पर अभाव वस्त्र , भोजपत्र या कागज पर अंकित चित्र ।

मृदभांड कला –मिट्टी के बर्तन ।

मुद्राकला –सिक्के या मुहरे ।

2-   कभी कभी जिस पदार्थ से कलाकृतियो का निर्माण किया जाता है , उस पदार्थ के नाम पर उस कला का प्रकार जाना जाता है , जैसे –

प्रस्तर कला –पत्थर से गढ़ी हुई आकृतियाँ ।

धातुकला –कांसे ,ताँबे अथवा पीतल से बनाई गई मूर्तिया ।

दंतकला –हाथी के  दाँत से निर्मित कलाकृतियाँ  ।

मृतिका कला –मिट्टी से निर्मित कलाकृतियाँ   या खिलौने ।

कला का वर्गीकरण

कला का वर्गीकरण विभिन्न दृष्टिकोणों और उद्देश्यों के आधार पर किया जा सकता है। ललित कला सौंदर्य और भावनाओं की अभिव्यक्ति पर केंद्रित होती है, जबकि उपयोगी कला कार्यात्मकता और सौंदर्य को मिलाने का प्रयास करती है। प्रदर्शन कला दर्शकों के सामने कला का जीवंत प्रदर्शन करती है।

कला का वर्गीकरण विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है। यहाँ कला को मुख्यतः दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

1. ललित कला (Fine Arts)

ललित कला का उद्देश्य सौंदर्य और भावनाओं की अभिव्यक्ति करना होता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रकार शामिल हैं:

  • चित्रकला (Painting): रंगों और ब्रश का उपयोग करके चित्र बनाना।
  • मूर्तिकला (Sculpture): विभिन्न सामग्रियों जैसे पत्थर, लकड़ी या धातु से आकृतियाँ बनाना।
  • संगीत कला (Music): सुरों और लय का उपयोग करके भावनाओं को व्यक्त करना।
  • नृत्य कला (Dance): शारीरिक मुद्राओं और भावों के माध्यम से कला का प्रदर्शन करना।
  • रंगमंच कला (Theater): नाटकों और अभिनय के माध्यम से कहानियों का प्रदर्शन करना।
  • वास्तुकला (Architecture):वास्तुकला किसी स्थान को मानव के लिए वासयोग्य बनाने की कला है।
  • साहित्य (Literature): साहित्य कला में भाषा का सृजनात्मक और कलात्मक उपयोग किया जाता है।

2. उपयोगी कला (Applied Arts)

उपयोगी कला का उद्देश्य किसी वस्तु को कार्यात्मक और आकर्षक बनाना होता है। इसके अंतर्गत शामिल हैं:

  • काष्ठ कला (Woodwork): लकड़ी से वस्तुएँ बनाना।
  • धातुकला (Metalwork): धातु की वस्तुओं का निर्माण करना।
  • मृदभांड कला (Pottery): मिट्टी से बर्तन बनाना।
  • फैशन डिज़ाइन (Fashion Design): वस्त्रों और परिधानों का डिज़ाइन करना।

उपरोक्त कलाओं को निम्नलिखित प्रकार से भी श्रेणीकृत कर सकते हैं-

साहित्य – काव्य, उपन्यास, लघुकथा, महाकाव्य आदि

निष्पादन कलाएँ (performing arts) – संगीत, नृत्य, रंगमंच

पाक कला (culinary arts) – बेकिंग, चॉकलेटरिंग, मदिरा

मिडिया कला – फोटोग्राफी, सिनेमेलाटोग्राफी, विज्ञापन

दृष्य कलाएँ – ड्राइंग, चित्रकला, मूर्त्ति कला 

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