मध्यकालीन कला: विशेषताएँ, इतिहास और महत्व

मध्यकालीन कला भारतीय कला और संस्कृति के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कला उस दौर को दर्शाती है जब भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न राजवंशों का उदय और पतन हुआ, और उनके साथ ही नई कला शैलियों और रचनाओं का विकास हुआ। मध्यकालीन कला ने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को नई दिशा दी, जो आज भी हमारी धरोहर का हिस्सा है। इस लेख में हम मध्यकालीन कला के विभिन्न पहलुओं, इसके इतिहास, विशेषताओं और इसके सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

मध्यकालीन कला का परिचय (Introduction of Medieval Art)

10वीं शताब्दी ईस्वी से पहले भारतीय चित्रकला की प्राचीन परम्परा का प्रतिनिधित्व हमें बौद्ध कला में मिलता है। ये भित्ति चित्र ‘अधिकांश’ में ‘बौद्ध कला’ से और ‘अल्पांश’ में ‘जैन कला’ से जुड़े हैं। यूँ तो भित्ति चित्रण से पूर्व बौद्ध कला और जैन कला का समृद्ध रूप मूर्तियों तथा मंदिरों में फैला मिलता है और भित्ति चित्रण के निर्माण के बाद तो उसका रूप और अधिक निखर गया।

10वीं से 15वीं शताब्दी तक (500 वर्षों) की चित्रकला की उन्नत परम्परा को जीवित रखने का श्रेय ‘पाल’, ‘जैन’, ‘गुजरात’ एवं ‘अपभ्रंश’ शैलियों का जाता है। संस्कृत, प्राकृत भाषा के काव्यों, नाटकों, कथाओं आदि अनेक विषयों की कृतियों में चित्रकला के संबंध में जानकारी मिलती है। या यूं कहें कि विद्वानों, राजाओं और जनसामान्य में चित्रकला का सर्वत्र प्रसार हो चुका था।

इस युग में ऐसी दो विश्वकोषात्मक रचनाओं का निर्माण हुआ था, जिनमें अनेक विषयों के अतिरिक्त चित्रकला के विधि-विधानों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इन ग्रन्थों में ‘भोज’ (1005-1054 ई.) का ‘समरांगणसूत्रधार’ और ‘सोमेश्वरभूपति’ (12वीं शताब्दी) का ‘मानसोल्लास’ प्रमुख हैं। इन ग्रन्थों को पढ़कर तत्कालीन चित्रकला की समृद्धि का पता लगाया जा सकता है।

इसी प्रकार ‘सोमदेव’ व ‘क्षेमेन्द्र’ (11वीं शताब्दी) कृत ‘कथासरित्सागर’ के दोनों संस्करणों में ऐसी चर्चा देखने को मिलती है, जिनसे विदित होता है कि तत्कालीन समाज में चित्रकला के प्रति गहरी अभिरुचि जागृत हो चुकी थी। यह भी पाया गया कि इस युग में अधिकतर दृष्टान्त चित्रों का निर्माण हुआ। ऐसी सचित्र पोथियाँ प्रायः बंगाल, नेपाल, बिहार में निर्मित हुईं और विक्रमशिला, नालन्दा आदि तत्कालीन विद्या निकेतनों में अधिकतर इसी प्रकार की सचित्र पोथियाँ लिखी एवं चित्रित की गईं। इन पोथियों में मुख्यतः बुद्ध प्रतिमानों और अनेक देवी-देवताओं के चित्र निर्मित हुये और उपरोक्त तीनों केन्द्रों की (बंगाल, बिहार, नेपाल) शैली भी प्रायः समान थी।

‘श्री रायकृष्णदास जी’ ने इस युग की शैली के विषय में लिखा है कि “मूल रंग, जिनमें लाल (सिन्दूर, महावर तथा हिंगुल), पीला (हरताल या प्योड़ी), नीला (नील तथा लाजवर्द), सफेद एवं काला है और इनके सम्मिश्रण से उत्पन्न गुलाबी, हरा बैंगनी, फाखताई आदि रंगों का प्रयोग मिलता है। सोने का प्रयोग नगण्य है। पटरों पर बनाये गये चित्रों की रक्षा के लिये लाख का प्रयोग हुआ है।”

मध्यकालीन कला का इतिहास (History of Medieval Art)

मध्यकालीन कला का इतिहास भारत में 6वीं से 18वीं शताब्दी तक फैला हुआ है। इसे मुख्यतः तीन कालखंडों में विभाजित किया जा सकता है: प्रारंभिक मध्यकाल, उच्च मध्यकाल, और उत्तर मध्यकाल।

  • प्रारंभिक मध्यकाल (6वीं से 9वीं शताब्दी): इस काल में गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ। इन राज्यों में पल्लव, चोल, और चालुक्य प्रमुख थे, जिन्होंने मंदिर वास्तुकला और मूर्तिकला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। अजन्ता और एलोरा की गुफाओं में बनी चित्रकला और मूर्तियाँ इस काल की महत्वपूर्ण कला शैलियाँ हैं।
  • उच्च मध्यकाल (10वीं से 13वीं शताब्दी): इस काल में राजपूत, पाल, और चोल राजवंशों का उत्कर्ष हुआ। इस दौर में मंदिर वास्तुकला, विशेषकर दक्षिण भारत में, अपने चरम पर पहुँची। तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर इस काल के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • उत्तर मध्यकाल (14वीं से 18वीं शताब्दी): इस काल में दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य का प्रभाव रहा। इस दौर में इस्लामी कला और स्थापत्य शैली का भारत में प्रवेश हुआ, जो हिन्दू कला शैली के साथ मिलकर एक नई मिश्रित शैली का विकास हुआ। ताजमहल, लाल किला और कुतुब मीनार इस काल के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।

मध्यकालीन कला की प्रमुख शैलियाँ

इस युग की चार शैलियाँ निम्नलिखित हैं:-

  1. पाल शैली
  2. जैन शैली
  3. अपभ्रंश शैली
  4. गुजरात शैली
  • पाल शैली: 8वीं से 12वीं शताब्दी में विकसित, यह बौद्ध चित्रकला पर आधारित जटिल मानव आकृतियों का चित्रण करती है।
  • जैन शैली: 7वीं से 12वीं शताब्दी में विकसित, यह जैन तीर्थंकरों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।
  • अपभ्रंश शैली: 11वीं से 15वीं शताब्दी में विकसित, यह रंगों के जीवंत उपयोग और सरल आकृतियों के लिए जानी जाती है।
  • गुजरात शैली: पश्चिमी भारत में विकसित, यह स्थानीय रंगों और लघु चित्रण के लिए प्रसिद्ध है।

मध्यकालीन कला की विशेषताएँ (Characteristics of Medieval Art)

मध्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • धार्मिक कला (Religious Art): मध्यकालीन कला में धार्मिक विषयों का प्रमुख स्थान था। मंदिरों और मस्जिदों की सजावट, मूर्तियों का निर्माण, और धार्मिक पांडुलिपियों का चित्रांकन इस कला का हिस्सा थे। हिन्दू, बौद्ध, जैन और इस्लामी कला ने इस काल में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  • मूर्तिकला (Sculpture): मध्यकालीन मूर्तिकला में देवी-देवताओं, ऐतिहासिक व्यक्तियों और पौराणिक कथाओं को मुख्य रूप से दर्शाया गया है। खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियाँ, दक्षिण भारत के मंदिरों में गुप्त काल की मूर्तिकला, और जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ इस काल के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
  • चित्रकला (Painting): इस काल में चित्रकला ने भी महत्वपूर्ण विकास किया। राजस्थान और मुगलकालीन चित्रकला शैली ने इस दौर में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। अजंता और एलोरा की गुफाओं में की गई चित्रकला और मुगलकालीन मिनिएचर पेंटिंग्स इस काल की कला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
  • वास्तुकला (Architecture): मध्यकालीन वास्तुकला में मंदिर, मस्जिद, महल और किले प्रमुख थे। हिन्दू और इस्लामी वास्तुकला का मिश्रण इस काल की विशेषता है। ताजमहल, कुतुब मीनार, और दक्षिण भारत के मंदिरों की वास्तुकला इस कला का श्रेष्ठ उदाहरण है।
  • प्रतीकवाद (Symbolism) और सजावट (Ornamentation): इस काल की कला में प्रतीकवाद और सजावट का महत्वपूर्ण स्थान था। धार्मिक प्रतीकों, ज्यामितीय डिजाइनों, और पुष्पों के रूपांकन का व्यापक उपयोग किया गया। मंदिरों और मस्जिदों की दीवारों पर जटिल नक्काशी और चित्रकारी इस कला की विशेषता थी।

मध्यकालीन कला के प्रमुख उदाहरण (Major Examples of Medieval Art)

मध्यकालीन कला के कई महत्वपूर्ण उदाहरण भारतीय उपमहाद्वीप में देखे जा सकते हैं:

  • खजुराहो के मंदिर: मध्य प्रदेश में स्थित ये मंदिर अपनी उत्कृष्ट मूर्तिकला और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ की मूर्तियों में धार्मिक और लौकिक विषयों का अनूठा मिश्रण है।
  • ताजमहल: मुगलकालीन वास्तुकला का यह अनमोल रत्न दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक है। इसका संगमरमर का श्वेत गुंबद और बारीक नक्काशी मध्यकालीन कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
  • कुतुब मीनार: दिल्ली में स्थित यह मीनार इस्लामी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी जटिल नक्काशी और स्थापत्य शैली इसे विशिष्ट बनाती है।
  • कोणार्क का सूर्य मंदिर: ओडिशा में स्थित यह मंदिर अपने विशाल आकार और जटिल मूर्तिकला के लिए जाना जाता है। इसे सूर्य देवता के रथ के रूप में बनाया गया है, और यह हिन्दू वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

मध्यकालीन कला का सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव (Cultural and Religious Impact of Medieval Art)

मध्यकालीन कला ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला। यह कला धार्मिक आस्था को अभिव्यक्त करने का महत्वपूर्ण साधन बनी। मंदिरों और मस्जिदों की कला ने लोगों को धार्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति जागरूक किया। इस कला ने न केवल धार्मिक स्थलों को सजाया, बल्कि यह समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधाराओं का भी प्रचार-प्रसार किया।

इस्लामी और हिन्दू कला के मिश्रण ने भारतीय कला को एक नई दिशा दी, जिससे आगे चलकर भारतीय कला की अनूठी शैली विकसित हुई। मध्यकालीन कला ने स्थापत्य कला, मूर्तिकला, और चित्रकला के क्षेत्र में नई शैलियों और तकनीकों का विकास किया, जो आज भी भारतीय कला का हिस्सा हैं।

मध्यकालीन कला के संरक्षण और अध्ययन (Preservation and Study of Medieval Art)

मध्यकालीन कला के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए गए हैं। प्राकृतिक आपदाएँ, मानवजनित क्षति, और समय के साथ हुई क्षति के बावजूद, इन कलाओं को संरक्षित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ और परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। यूनेस्को द्वारा कई मध्यकालीन स्थलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है, जिससे इनके संरक्षण में सहायता मिली है।

आधुनिक समय में, मध्यकालीन कला का अध्ययन विभिन्न विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, और संग्रहालयों में किया जा रहा है। इसके साथ ही, कला के इन रूपों पर आधारित शोधपत्र, पुस्तकें, और प्रदर्शनियाँ भी आयोजित की जाती हैं, जो इस कला की महत्ता को समझने और संरक्षित करने में सहायक हैं।

मध्यकालीन कला भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है। इसने न केवल धार्मिक आस्था को अभिव्यक्त किया, बल्कि समाज में सांस्कृतिक और सामाजिक बदलावों का भी प्रतीक बनी। आज भी, यह कला हमारे इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे संरक्षित करने और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। मध्यकालीन कला का अध्ययन हमें न केवल हमारे अतीत से जोड़ता है, बल्कि यह हमें भविष्य के लिए प्रेरणा भी देता है।

मध्यकालीन कला से संबंधित प्रश्न और उत्तर (FAQ)

प्रश्न: मध्यकालीन कला किस कालखंड को संदर्भित करती है? 

उत्तर: मध्यकालीन कला 6वीं से 18वीं शताब्दी के बीच की कला को संदर्भित करती है, जिसमें प्रारंभिक मध्यकाल, उच्च मध्यकाल, और उत्तर मध्यकाल शामिल हैं।

प्रश्न: मध्यकालीन कला में प्रमुख रूप से कौन-कौन सी कला शैलियाँ शामिल थीं? 

उत्तर: मध्यकालीन कला में प्रमुख रूप से धार्मिक कला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला, और प्रतीकात्मक सजावट शामिल थीं।

प्रश्न: मध्यकालीन कला में मंदिर वास्तुकला का क्या महत्व था? 

उत्तर: मध्यकालीन कला में मंदिर वास्तुकला का महत्वपूर्ण स्थान था। यह धार्मिक आस्था का प्रतीक थी और कला, संस्कृति, और समाज के समृद्धिकरण में योगदान देती थी।

प्रश्न: मध्यकालीन चित्रकला की प्रमुख शैलियाँ कौन सी थीं? 

उत्तर: मध्यकालीन चित्रकला की प्रमुख शैलियाँ राजस्थान की राजपूत शैली और मुगल शैली थीं, जो मिनिएचर पेंटिंग के रूप में जानी जाती हैं।

प्रश्न: मध्यकालीन भारत में कौन से प्रमुख स्थापत्य स्मारक बनाए गए?

 उत्तर: ताजमहल, कुतुब मीनार, खजुराहो के मंदिर, और कोणार्क का सूर्य मंदिर मध्यकालीन भारत के प्रमुख स्थापत्य स्मारक हैं।

प्रश्न: ताजमहल किस कला शैली का उत्कृष्ट उदाहरण है? 

उत्तर: ताजमहल मुगलकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें इस्लामी कला के साथ भारतीय स्थापत्य शैली का मिश्रण है।

प्रश्न: खजुराहो के मंदिरों में किस प्रकार की कला दिखाई देती है? 

उत्तर: खजुराहो के मंदिरों में जटिल मूर्तिकला और वास्तुकला दिखाई देती है, जो धार्मिक और लौकिक विषयों का मिश्रण है।

प्रश्न: मध्यकालीन कला का समाज पर क्या प्रभाव था? 

उत्तर: मध्यकालीन कला ने समाज में धार्मिक आस्था को सुदृढ़ किया और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में सामाजिक एकता और पहचान को मजबूत किया।

प्रश्न: किस कालखंड में इस्लामी कला का भारतीय कला पर प्रभाव पड़ा? 

उत्तर: इस्लामी कला का भारतीय कला पर प्रभाव उत्तर मध्यकाल (14वीं से 18वीं शताब्दी) में पड़ा, जब दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य का उदय हुआ।

प्रश्न: मध्यकालीन कला के संरक्षण के लिए कौन से प्रयास किए गए हैं? 

उत्तर: मध्यकालीन कला के संरक्षण के लिए यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा विभिन्न संरक्षण परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं।

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