नाग शैली: भारतीय वास्तुकला का अनमोल रत्न

भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रेमियों के लिए, नाग शैली एक ऐसा विषय है जो हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है। आइए इस लेख में जानें कि क्या है यह नाग शैली, और क्यों है यह इतनी महत्वपूर्ण।

नाग शैली का परिचय

नाग शैली भारतीय हिन्दू स्थापत्य कला की एक प्रमुख शैली है, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में विकसित हुई। ‘नाग’ शब्द का अर्थ है “नगर”, क्योंकि यह शैली सबसे पहले शहरी क्षेत्रों में विकसित हुई थी।

इस शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक देखा जा सकता है। विशेष रूप से, 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच यह शैली अपने चरम पर थी।

नाग शैली की प्रमुख विशेषताएँ

1. संरचना

नाग शैली के मंदिरों की पहचान उनके विशिष्ट डिजाइन से होती है:

  • चतुष्कोणीय आधार
  • शिखर तक ऊंचा उठता हुआ आकार
  • एक ही अक्ष पर निर्मित गर्भगृह, अन्तराल, मण्डप और अर्द्धमण्डप

2. मुख्य अंग

नाग शैली के मंदिरों में आठ प्रमुख अंग होते हैं:

  1. मूल आधार: सम्पूर्ण भवन का आधार
  2. मसूरक: नींव और दीवारों के बीच का भाग
  3. जंघा: दीवारें, विशेषकर गर्भगृह की दीवारें
  4. कपोत: कार्निस
  5. शिखर: मंदिर का शीर्ष भाग
  6. ग्रीवा: शिखर का ऊपरी भाग
  7. वर्तुलाकार आमलक: शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग
  8. कलश: शिखर का शीर्ष भाग

3. अलंकरण

नाग शैली के मंदिरों में जटिल नक्काशी और मूर्तिकला का प्रयोग किया जाता है। इनमें ज्यामितीय और वनस्पति आधारित डिज़ाइन के साथ-साथ देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी शामिल होती हैं।

नाग शैली की उपशैलियाँ

नाग शैली की चार प्रमुख उपशैलियाँ हैं:

  1. एकायतन शैली: इसमें एक मुख्य मंदिर होता है।
  2. पंचायतन शैली: इसमें एक मुख्य मंदिर और चार छोटे मंदिर होते हैं।
  3. भूमिज शैली: इसमें क्रमशः ऊपर की ओर छोटे होते जाने वाले मंजिल होते हैं।
  4. गुर्जर प्रतिहार शैली: यह गुजरात और राजस्थान क्षेत्र में प्रचलित है।

नाग शैली का विकास

नाग शैली का विकास गुप्त काल (लगभग 4वीं से 6वीं शताब्दी) में शुरू हुआ। इस अवधि में:

  • कला और वास्तुकला में नई तकनीकों का विकास हुआ
  • शिल्पशास्त्र की रचनाएँ हुईं
  • ईंट, चूना और पत्थर से मंदिर निर्माण की परंपरा शुरू हुई

8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच नाग शैली अपने चरम पर पहुंची, जिस दौरान कई भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ।

नाग शैली के प्रमुख मंदिर और उनके स्थान

भारत में नाग शैली के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से कुछ हैं:

  1. कंदरिया महादेव मंदिर, खजुराहो, मध्य प्रदेश
  2. लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर, ओडिशा
  3. जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा
  4. कोणार्क का सूर्य मंदिर, ओडिशा
  5. दिलवाडा के मंदिर, माउंट आबू, राजस्थान
  6. सोमनाथ मंदिर, गुजरात
  7. खजुराहो के मंदिर समूह, मध्य प्रदेश

नाग शैली के मंदिरों के निर्माण में प्रयुक्त सामग्री

नाग शैली के मंदिरों के निर्माण में विभिन्न प्रकार की सामग्री का उपयोग किया जाता है:

  1. पत्थर: बलुआ पत्थर, ग्रेनाइट, और मार्बल का प्रयोग मुख्य संरचना के लिए किया जाता है।
  2. ईंट: विशेषकर प्रारंभिक चरण में ईंटों का प्रयोग किया गया।
  3. चूना: मोर्टार और प्लास्टर के लिए चूने का उपयोग किया जाता है।
  4. लकड़ी: छत और सजावटी तत्वों के लिए लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।
  5. धातु: कांस्य और तांबे का उपयोग मूर्तियों और सजावटी तत्वों में किया जाता है।

निष्कर्ष

नाग शैली भारतीय वास्तुकला का एक अमूल्य हिस्सा है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। इसकी अनूठी विशेषताएँ, विविध उपशैलियाँ, और व्यापक भौगोलिक प्रसार इसे भारतीय स्थापत्य कला का एक अद्वितीय उदाहरण बनाते हैं।

आज भी, नाग शैली के मंदिर न केवल पूजा स्थल हैं, बल्कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक भी हैं। इन मंदिरों का अध्ययन और संरक्षण न केवल हमारे इतिहास को समझने में मदद करता है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस अमूल्य धरोहर को सुरक्षित रखने में भी सहायक है।

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